टीबी मुक्त भारत बनाने के लिए बनेंगे टीबी फैमिली केयर गिवर



  • परिवार के सदस्यों या करीबी लोगों में से प्राथमिक देखभालकर्ता का होगा चुनाव
  • टीबी रोगी की देखभाल, उपचार और उसके अनुपालन के लिए किया जायेगा प्रशिक्षित

 
कानपुर नगर - पारिवारिक देखभाल से रोगी और देखभाल करने वाले के सम्बन्ध बेहतर होते हैं और देखभालकर्ता का आत्मविश्वास बढ़ता है। देखभाल करने वाले कठिन परिस्थितियों को संभालना सीखते हैं, इससे उनमें संतुष्टि का भाव आता है और इसका सीधा प्रभाव रोगी के स्वास्थ्य परिणाम पर पड़ता है। इसी उद्देश्य के साथ जनपद में जल्द ही फैमिली केयर गिवर कार्यक्रम मॉडल की शुरुआत होगी।

इस विषय में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आलोक रंजन ने बताया कि अब तक टीबी का उपचार ले रहे मरीजों के लिए एक ट्रीटमेंट सपोर्टर नियुक्त किया जाता था, जो आशा कार्यकर्ता होती थी। लेकिन अब मरीज का ध्यान रखने के लिए उसी के परिवार से अथवा उसके किसी नजदीकी व्यक्ति को केयर गिवर का दायित्व सौंपा जायेगा। फैमिली केयर गिवर मॉडल टीबी के शुरुआती लक्षणों की पहचान करके उन्हें रोकने और बीमारी के दौरान समय पर रेफरल द्वारा रोगी और उनके परिवार के सदस्यों को व्यापक और समग्र देखभाल और सहायता सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा इससे इलाज, उचित पोषण सुनिश्चित करने और उपचार के मानकों का पालन करने में मदद मिलेगी, जिससे टीबी से पीड़ित व्यक्तियों के समग्र स्वास्थ्य परिणामों में सुधार होगा।

जिला क्षयरोग अधिकारी डॉ आरपी मिश्रा का कहना है की यह केयर गिवर टीबी मरीज को भावनात्मक रूप से तो सपोर्ट करेगा ही साथ ही वह मरीज को इलाज पूर्ण करने, बीच में न छोड़ने, दवा की जानकारी, पोषण आहार देने आदि में भी सहायता करेगा। जिले में कुछ समय पहले ही टीबी मुक्त ग्राम पंचायत अभियान का भी आरंभ किया गया है। निक्षय मित्र योजना के तहत भी समाज के कई लोगों ने आगे आकर टीबी मरीजों को गोद लिया एवं उन्हें लगातार पोषण आहार उपलब्ध करवाया जा रहा है।

उप जिला क्षयरोग अधिकारी डॉ राजेश्वर सिंह ने बताया कि टीबी मरीज की उचित देखभाल और सहयोग प्रदान करने में परिवार के सदस्य अहम भूमिका निभा सकते हैं। पारिवारिक देखभालकर्ता अक्सर रोगी की देखभाल सुनिश्चित करने वाले प्राथमिक प्रदाता होते हैं और उनकी भागीदारी टीबी से पीड़ित व्यक्ति के उपचार परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

एनटीईपी के जिला कार्यक्रम समन्वयक (डीपीसी) राजीव सक्सेना बताते हैं की टीबी रोगियों के परिवार के सदस्यों या रोगी के करीबी लोगों में से प्राथमिक देखभालकर्ता की पहचान करने और उन्हें प्रशिक्षण देने की तैयारी भी की जा रही है। इस पहल के तहत स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा प्रत्येक टीबी रोगी के लिए कोई ऐसा व्यक्ति जो अधिकतर समय मरीज के साथ रहता हो व जिसकी आयु 14 वर्ष से अधिक हो एवं लिखना-पढ़ना जानता हो, उसकी पहचान की जायेगी। साथ ही वह रोगी की देखभाल की जिम्मेदारी लेने को तैयार हो और परिवार की देखभाल करने वाला बनने के लिए सहमत हो। देखभाल करने वाले का मरीज का रिश्तेदार होना जरूरी नहीं है। पारिवारिक देखभालकर्ता का चयन केवल मरीज द्वारा किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस साल जिले में अब तक लगभग 15,400 क्षय रोगियों को नोटिफ़ाइ किया जा चुका है। इसमें 7,400 रोगी सरकारी क्षेत्र व 8,000 निजी क्षेत्र के शामिल हैं। वर्तमान में करीब 13,000 क्षय रोगियों का उपचार चल रहा है।