- केजीएमयू की कुलपति डा. सोनिया नित्यानन्द इस सम्बन्ध में जागरूकता की बताई आवश्यकता
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 दिसंबर को मन की बात कार्यक्रम में आईसीएमआर की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए एंटीबायोटिक के प्रति बढ़ते रेजिस्टेंस पर चिन्ता व्यक्त की है। इसी क्रम में केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग के कारण पूरी दुनिया में लगभग 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि अगर एंटीबायोटिक दवाओं का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जाए तो बैक्टीरिया को मारने की उनकी क्षमता खत्म हो जाती है, इसे रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस-ए.एम.आर.) कहा जाता है।
डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध वह स्थिति है, जब गंभीर संक्रमणों के उपचार में प्रयुक्त एंटीबायोटिक दवाएँ प्रभावी नहीं रह जाती हैं। उन्होंने बताया कि यह समस्या टीबी, निमोनिया, यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, त्वचा एवं सॉफ्ट टिशू संक्रमण, सेप्सिस तथा अन्य विभिन्न संक्रामक रोगों के उपचार में एंटीबायोटिक की विफलता के रूप में सामने आती है, जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है और बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि एएमआर तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और परजीवी समय के साथ बदलते हैं और उन पर दवाओं का असर नहीं होता है, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एएमआर को मानवता के सामने आने वाले शीर्ष 10 वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक घोषित किया है।
उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग, उनका अविवेकपूर्ण एवं अनियमित प्रयोग, अधिक मात्रा अथवा कम मात्रा में देना तथा आवश्यकता से अधिक अवधि या अपर्याप्त अवधि तक एंटीबायोटिक का उपयोग ये सभी एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के विकास के प्रमुख कारण हैं। भारत में एंटीबायोटिक दवाएं मेडिकल स्टोर पर बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर भी आसानी से मिल जाती हैं, जिससे आम जनता साधारण सर्दी, जुखाम या बुखार में भी इन दवाओं का प्रयोग कर लेती है, यह भी एएमआर का एक प्रमुख कारण है। डा. सूर्यकान्त ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए, इसके रोकथाम के कड़े उपाय करने का सुक्षाव दिया और कहा कि इसके लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य नीति बनानी पड़ेगी और एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम विकसित करना पड़ेगा तभी हम इस समस्या का समाधान ढूंढ पायेंगे। यदि बढ़ते एएमआर को रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया, तो एएमआर के कारण 2050 तक वार्षिक मृत्यु दर एक करोड़ तक होने का अनुमान है।
केजीएमयू की कुलपति डा. सोनिया नित्यानन्द ने भी इस मुद्दे को गम्भीरता से लेते हुये इस विषय पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता बताई।