ठीक होने के भ्रम में दवा बंद करने से गंभीर हो सकती है टीबी



  • सीएमओ की अपील-निःशुल्क इलाज करवा कर समाज को करें टीबी मुक्त
  • विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च)से चलाए जाएंगे विशेष अभियान

गोरखपुर - क्षय रोग (टीबी) के मरीज एक महीने की दवा खाने के बाद स्वस्थ महसूस करने लगते हैं और ऐसे में कई मरीज दवा बीच में छोड़ देते हैं । ऐसा करने से वह ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के मरीज बन जाते हैं । उनमें से कुछ मरीज एक्सडीआर टीबी के मरीज भी हो जाते हैं जिनका इलाज मुश्किल हो जाता है । यह कहना है मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आशुतोष कुमार दूबे का। उन्होंने विश्व क्षय रोग  दिवस (24मार्च)के मौके पर अपील की है कि टीबी मरीज सरकारी अस्पताल की निःशुल्क इलाज की सुविधा का लाभ उठायें और स्वस्थ होकर समाज को टीबी मुक्त बनाने में योगदान दें ।

डॉ. दूबे ने बताया कि विश्व के 27 फीसदी टीबी मरीज भारत में हैं और देश के 20 फीसदी टीबी मरीज उत्तर प्रदेश में है । शासन ने 24 मार्च से टीबी उन्मूलन संबंधित विशेष अभियान चलाने का दिशा-निर्देश दिया है । दो अप्रैल से शुरू हो रहे विशेष संचारी रोग नियंत्रण अभियान और 15 अप्रैल से प्रस्तावित दस्तक पखवाड़े में भी टीबी मरीज खोजे जाएंगे और इस बीमारी के प्रति जनजागरूकता की पहल होगी । विश्व टीबी दिवस से दो बड़े अभियान शुरू होंगे । एक अभियान के तहत टीबी ग्रसित बच्चों और किशोरों व 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला टीबी रोगियों को भी गोद दिलवाने पर जोर होगा तो दूसरे अभियान के तहत आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर से जुड़े क्षेत्रों में टीबी मरीजों की खोज, कैंप के आयोजन और जनजागरूकता जैसे प्रयास होंगे।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. दूबे ने बताया कि टीबी अनादि काल से चला आ रहा रोग है लेकिन जब इसकी दवा नहीं थी तब यह एक महामारी थी। सत्तर के दशक में रिफैंम्पिसिन दवा की खोज के बाद टीबी पर प्रभावी नियंत्रण करना काफी आसान हो गया । इस समय टीबी की आधुनिकतम दवाएं निःशुल्क उपलब्ध हैं जिनके जरिये टीबी पर नियंत्रण पा सकते हैं । आवश्कता है कि ‘’उचित दवा, उचित मात्रा में और उचित समय’’ तक सेवन किया जाए। जब तक चिकित्सक द्वारा सलाह न दी जाए दवा छोड़नी नहीं है ।

उन्होंने कहा कि सरकार वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है । प्रत्येक ढाई लाख से पांच लाख की आबादी पर एक टीबी यूनिट है और पचास हजार से एक लाख की आबादी पर एक डायग्नोस्टिक सेंटर बनाया गया है । टीबी की समस्त जांच और दवाएं राजकीय चिकित्सालयों में मुफ्त होती हैं । अगर कोई प्राइवेट चिकित्सक भी अपने मरीजों की सरकारी अस्पताल में निःशुल्क जांच करवाना चाहता है तो करा सकता है । गैर सरकारी व्यक्ति द्वारा टीबी का नया मरीज खोजने पर 500 रुपये, निजी चिकित्सक द्वारा टीबी के नये मरीज की पहचान करने पर 500 रुपये और मरीज को  निक्षय पोर्टल पर पंजीकरण के बाद इलाज के दौरान निःक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रतिमाहदिये जाने का प्रावधान है । टीबी के मरीज को दवा खिलाने वाले ट्रीटमेंट सुपरवाइजर को भी पैसे मिलते हैं ।

दो सप्ताह की खांसी हो सकती है टीबी : सीएमओ ने बताया कि दो सप्ताह से अधिक की खांसी टीबी हो सकती है, मगर प्रत्येक खांसी टीबी नहीं होती है |  अगर यह दिक्कत है तो टीबी की जांच अवश्य कराएं । शरीर में टीबी मुख्यतया फेफड़ों को ही प्रभावित करती है लेकिन शरीर के अन्य अंगों में भी टीबी होती है । नाखून और बाल छोड़ कर शरीर के सभी अंगों की टीबी रिपोर्टेड है। ऐसी टीबी एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहलाती है और इसकी पहचान विशेषज्ञों द्वारा ही की जाती है । गैर फेफड़े वाले टीबी मरीज तो संक्रमण नहीं फैलाते लेकिन फेफड़ों के टीबी का धनात्मक मरीज अगर उपचार नहीं लेता है तो साल भर में दस से पंद्रह लोगों को मरीज बना देता है। हर तीन मिनट में टीबी के दो मरीजों की मृत्यु हो जाती है । भारत में प्रत्येक एक लाख की आबादी पर 192 टीबी मरीज वर्ष 2020 में पाए गये ।

लक्षण मिलने पर ही उपचार : डॉ. दूबे ने यह भी बताया कि भारत में युवावस्था तक अधिकतरमें टीबी के बैक्टीरिया पाएजाते हैं, लेकिन उपचार उन्हीं के लिए जरूरी हैं जिनमें लक्षण पाए जाते हैं । नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बीसीजी का टीका प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देता है, इसलिए टीबी उन्हीं को शिकार बनाती है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है । डायबिटिज, एचआईवी, क्रानिक किडनी डिजीज, प्रेग्नेंसी, कैंसर, पोषण की कमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है । ऐसा देखा गया है कि एचआईवी से ग्रसित 50 प्रतिशत से अधिक मरीज टीबी के कारण ही मरते हैं । एचआईवी एक उत्प्रेरक की तरह काम करता है । एचआईवी मरीजों में टीबी की आशंका बढ़ जाती है और टीबी में भी एचआईवी की आशंका बढ़ जाती है।  टीबी की भयावहता को इसी रूप में जाना जा सकता है कि देश में लगभग तीन लाख बच्चे इस बीमारी के कारण हर साल स्कूल जाना छोड़ देते हैं, जबकि एक लाख महिलाएं घर से निकाल दी जाती हैं । टीबी व्यक्ति की दशा, दिशा और दर्शन को बदल देता है । टीबी के कारण हुए कार्यदिवसों के नुकसान से वर्ष 2016 में भारत की एक फीसदी जीडीपी भी प्रभावित हुई ।