प्रदेश के सिर्फ़ 4.8 प्रतिशत शिशु ही न्यूनतम स्वीकार्य आहार के दायरे में



लखनऊ - पोषण न सिर्फ़ शारीरिक बल्कि मानसिक असंतुलन के लिए भी ज़िम्मेदार होता है। बदलती जीवनशैली और वैश्वीकरण के कारण खाने में बहुत ही विविधताएँ आयी हैं, एक चीज जो अभी भी नहीं बदली है, कि लोग अभी भी सिर्फ़ भूख के लिए खाते हैं, पोषण के लिए नहीं। उनका ध्यान होता है कि पेट भरना चाहिए, पेट भरने की प्रक्रिया में पोषण कितना मिल रहा है, उस पर अभी उतना ध्यान नही दिया जा रहा है।

व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण-2016-18 (सीएनएनएस 2016-18) की रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण सिर्फ़ प्रदेश या देश स्तर की बात नहीं बल्कि बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की स्थिति पोषण सम्बन्धी विश्व का सबसे बड़ा स्वास्थ्य भार है यानि सिर्फ़ सही पोषण की कमी के कारण यह समस्या अभी भी विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या बनी हुयी है।

रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में छः से 23 माह तक के सिर्फ़ 4.3 प्रतिशत शिशुओं को न्यूनतम स्वीकार्य आहार मिलता है यानि एक शिशु को जितना आहार मिलना चाहिए लगभग उतना ही। सर्वे के अनुसार यदि बच्चों में पोषण की बात करें तो नवजात या बच्चों को वयस्क से ज्यादा पोषणयुक्त भोजन की आवश्यकता होती है। एक नवजात को जहाँ 120 केलोरी प्रति एक किलो चाहिए होती हैं वही दस साल से अधिक उम्र को 56 केलोरी प्रति किलो की जरुरत होती है।

सरकार के द्वारा भी शिशुओं के सही पोषण के लिए शुरुआती एक हज़ार दिन को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिसके अंतर्गत जन्म से लेकर शिशु के दो साल तक के समय में सबसे ज्यादा पोषण पर ध्यान देने की जरुरत होती है। छः माह तक तो सिर्फ़ स्तनपान ही कराना होता है, उसके बाद शिशु के पूरक आहार पर ध्यान देना होता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे- 5 (2019-21) के अनुसार प्रदेश में छः माह से 23 माह तक के सिर्फ़ 5.9 प्रतिशत बच्चों को स्तनपान के साथ पूरक आहार दिया जा रहा है। वहीँ आधी आबादी कहीं जाने वाली महिलाओं में भी 15 से 49 उम्र की लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी की समस्या से ग्रसित हैं। वहीँ 15 से 49 वर्ष के 21.5 प्रतिशत पुरुषों में खून की कमी की समस्या है।  19 प्रतिशत महिलाओं का बॉडी मास्क इंडेक्स (बीएमआई) नार्मल से कम हैं वहीँ, 17.9 प्रतिशत पुरुषों का बीएमआई नार्मल से कम हैं।

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की न्यूट्रीशन विभाग की हेड डॉ. सुनीता सक्सेना बताती हैं सही पोषण के लिए जरुरी है कि सभी अपनी डाइट में सभी खाद्य समूहों को शामिल करें, जैसे कि कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटामिन, मिनरल, फाइबर, और वाटर| और अपने खाने को पूरे दिन में चार भागों में बांटे, सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना, शाम में हल्का खाना या तरल पदार्थ लेना, और रात का खाना और कोशिश करे कि खाने में इंद्राधनुष के सभी रंग जैसे कि लाल, पीला, हरा, नारंगी, सफ़ेद/भूरा, नीला/बैंगनी शामिल करें।

डॉ. सुनीता बताती हैं कि बच्चों से लेकर बड़ों तक को खाने का यही तरीका अपनाना चाहिए| बच्चों में खाद्य की मात्रा और उसे देने का तरीका अलग होता है। बच्चे हर चीज आसानी से नहीं निगल सकते, तो उनकी उम्र के अनुसार खाद्य पदार्थों को निगलने में सरल बनाते हुए खिलाना चाहिए।

सही पोषण न मिलने के प्रभाव : डॉ. सुनीता सक्सेना बताती हैं कि सही पोषण न मिलने पर, शरीर पर बहुत से चिकित्सीय प्रभाव पड़ते हैं जैसे कि आंतों में संक्रमण, पोषक तत्व को अवशोषित करने में समस्या, मांसपेशियों की हानि, त्वचा में संक्रमण, पेनक्रियाज में समस्या, शुगर जोखिम में वृद्धि, लीवर व प्रतिरक्षा प्रणाली में समस्या, श्वासप्रणाली में संक्रमण,  हृदय रोग सम्बन्धी समस्या, भूख में कमी, सुस्ती, दीर्घकालिक विकासात्मक प्रभाव, थायरॉयड, तनाव, शारीरिक विकास, हार्मोनल असंतुलन आदि।

स्वीकार्य आहार : अनाज, कन्द व मूल, गाढ़ी पकी हुई दालें व फलियाँ, दूध व दुग्ध पदार्थ, अंडा, मांस व मछली, पके हुए नारंगी/ पीले रंग के गूदेदार फल एवं सब्जियां, हरी एवं पत्तेदार सब्जियां आदि।

बीएमआई : लंबाई के हिसाब से वजन का कम होना या अधिक होना की पहचान बीएमआई से की जाती है, यदि किसी का बीएमआई 18.5 किलोग्राम/मीटर² से 24.9 किलोग्राम/मीटर² है तो ही वह सामान्य श्रेणी में है यदि इससे कम या ज्यादा है तो वह अस्वस्थ है।