जनमानस को क्षय रोग के प्रति किया जागरूक



आइए हम सब मिलकर टीबी मुक्त भारत बनायें :  डा. सूर्यकान्त
विश्व क्षय रोग दिवस पर केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग ने 24 बच्चों को लिया गोद

लखनऊ - राबर्ट कॉक ने 24 मार्च 1882 को टीबी के जीवाणु की खोज की थी और यह खोज टीबी को समझने और इलाज में मील का पत्थर साबित हुई। इस खोज की याद में हर साल 24 मार्च को हम विश्व क्षय रोग दिवस के रूप में मनाते हैं। इस साल ‘विश्व टीबी दिवस 2022’ की थीम ‘इनवेस्ट टू एंड टीबी-सेव लाइव्स’ अर्थात “टीबी को खत्म करने के लिए निवेश करें-जीवन बचायें“ है। ज्ञात हो कि रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग अपना 75वाँ प्लेटिनम जुबली स्थापना वर्ष भी मना रहा है। इसी कड़ी में वृहस्पतिवार को जनमानस के साथ-साथ, मरीजों एवं तीमारदारों को टी.बी. के बारे में जागरूक किया गया।

रेस्पिरेटरी मेडिसिन के विभाग के अध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने लोगों को बताया कि जब टीबी रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक न्यूक्लीआई उत्पन्न होते हैं, जो हवा के माध्यम से फैल सकते हैं । विश्व में टीबी का हर चौथा मरीज भारतीय है। विश्व में प्रतिवर्ष 14 लाख मौत टी.बी. से होती हैं, उनमें से एक चौधाई से अधिक मौत अकेले भारत में होती हैं। हमारे देश में लगभग 1000 लोगों की मृत्यु प्रतिदिन टी.बी रोग के कारण होती है। उन्होनें आगे बताया कि लगातार दो हफ्ते तक खांसी आना, खांसी के साथ खून आना, छाती में दर्द होना, वजन कम होना, शाम को बुखार आना, रात में पसीना होना जैसे लक्षण होने पर मरीज को तुरन्त टीबी की जांच करानी चाहिए। डा. सूर्यकान्त ने टीबी रोग से जुड़े मिथक भी लोगों के सामने रखे और बताया कि टीबी का इलाज मुमकिन है, लेकिन टीबी का इलाज लंबा चलता है। टीबी का इलाज पूरा करवाने से यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है। टीबी के बारे में लोगों का दूसरा मिथक यह भी है कि टीबी की समस्या केवल फेफड़ों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन टीबी की समस्या खून के जरिये फैलकर शरीर के अन्य अंगों पर भी प्रभाव डाल सकती है। टीबी एक जानलेवा रोग है, यह भी एक मिथक ही है। अगर समय रहते व्यक्ति टीबी का इलाज करवा लें तो मरीज बिल्कुल ठीक होकर सामान्य जीवन जी सकता है।

डा. सूर्यकान्त जो उप्र स्टेट टास्क फोर्स (क्षय उन्मूलन) के चेयरमैन भी हैं ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री ने वर्ष 2025 तक टी.बी. मुक्त भारत बनाने का सपना देखा है। इस अवसर पर भारत से टी.बी. उन्मूलन के लिए प्रधानमंत्री के लक्ष्य को पूरा करने के लिए मरीजों, तीमारदारों एवं चिकित्सकों ने संकल्प लिया। ज्ञात रहे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उप्र के सभी शिक्षण एवं चिकित्सा संस्थानों तथा स्वयंसेवी संस्थानों का आहृवान किया है कि वह टी.बी. से ग्रसित बच्चों को गोद लें एवं इलाज के दौरान उनका पोषण एवं भावनात्मक रूप से संरक्षण प्रदान करें। इसी प्रेरणा से रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग  ने टी.बी. रोग से पीड़ित 52 बच्चों को पहले ही गोद लिया था और आज विश्व टी.बी. दिवस के मौके पर पुनः 24 बच्चे गोद लिये गये हैं।

रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर, डा. आर ए एस कुशवाहा ने टीबी से बचाव के तरीकों से लोगों को अवगत कराया। रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर, डा. संतोष कुमार ने लोगों को बताया कि टी.बी. की जांच एवं इलाज सभी सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क उपलब्ध है | इसके अलावा सरकारी अस्पतालों की दवाएं, इलाज एवं जांच प्राइवेट संस्थानों की तुलना में अच्छी एवं गुणवत्ता में भी श्रेष्ठ हैं। विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. अजय कुमार वर्मा ने बताया कि टी.बी. एक नोटीफियबल डिजीज है,  नोटीफाई (पंजीकृत) होते ही निक्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान भारत सरकार द्वारा 500 रुपये प्रतिमाह सीधे मरीज के बैंक खाते में दिया जा रहा है। इस अवसर पर के.जी.एम.यू. के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के फैकल्टी मेंबर्स डा. राजीव गर्ग, डा. आनन्द श्रीवास्तव, डा. दर्शन कुमार बजाज, डा. ज्योति बाजपेई, रेजिडेन्ट डाक्टर्स एवं कर्मचारीगण भी उपस्थित रहे ।