स्वस्थ होने के बाद टीबी रोगियों की मदद कर रहीं श्वेता



  • सरकारी इलाज पर जताया भरोसा और एमडीआर टीबी से हुईं स्वस्थ
  • लखनऊ से मुंबई तक अनवरत मिलती रहीं स्वास्थ्य सेवाएं

लखनऊ - जनपद में राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत टीबी को जड़ से ख़त्म करने के हरसंभव  प्रयास किये जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि लखनऊ निवासी 27 वर्षीया  एमडीआर टीबी से पीड़ित श्वेता (परिवर्तित नाम) को जब अपने जिले में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्य में भी इलाज के दौरान सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का पूरा साथ मिला तो वह पूरी तरह ठीक हो गई। एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते श्वेता अब इस गंभीर बीमारी के खिलाफ लड़ाई में योगदान दे रही हैं और निक्षय मित्र के रूप में दूसरे मरीजों की मदद कर रही हैं।

श्वेता बताती हैं कि वह मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थीं। फ़रवरी  2020 में लगातार खांसी और बुखार आया जिसके बाद निजी अस्पताल में मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी की पुष्टि हुई। श्वेता के लिए पैसा कोई मुद्दा नहीं था लेकिन उन्हें सरकारी तंत्र पर अधिक भरोसा था। इसी बीच श्वेता अपने घर लखनऊ आ गईं। यहां पर जिला क्षय रोग केंद्र पर जांच कराई और एमडीआर टीबी की पुष्टि होने के बाद राम मनोहर लोहिया अस्पताल स्थित टीबी यूनिट से उपचार शुरू किया। इस बीच कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया, जिसके चलते वह लखनऊ में ही रहकर काम करने लगीं। श्वेता बताती हैं – “लॉकडाउन के दौरान राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के एसटीएस एवं टीबीएचवी घर पर ही दवा उपलब्ध कराते रहे। लगातार दवा और प्रोटीन युक्त आहार के सेवन की सलाह देते थे। वह मेरे घर पर दवाएं भी पहुंचाते रहे।"

कोविड के बाद श्वेता की कंपनी ने मुंबई में पुनः ऑफिस प्रारंभ हुआ तो उन्हें वहां जाना पड़ा। ऐसे में इलाज कैसे होगा...? इसको लेकर परेशान हो गईं। तब उन्होंने जिला क्षय रोग केंद्र पर सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाइजर अभय चन्द्र मित्रा से बात की जिनकी मदद से उन्हें मुंबई में ही उनके घर के निकट की टीबी यूनिट से जोड़ दिया गया। श्वेता ने बताया कि वहां 11 महीने तक इलाज चला और इस दौरान उनके खाते में हर माह पोषण के लिए 500 रुपये भी आए। कंपनी का भी पूरा सहयोग मिला और श्वेता टीबी मुक्त हो गईं।

दवाओं के प्रभाव से घबराई नहीं, विभाग की सलाह का पालन किया : श्वेता बताती हैं - इलाज शुरू होने के बाद शरीर का रंग काला होने लगा और  उल्टियां भी होती थीं। इलाज शुरू करने के समय ही दवा के दुष्प्रभावों के बारे में बता दिया गया था और यह भी कहा गया था कि कुछ समय तक ऐसा होगा। टीबी को लेकर हर छोटी-बड़ी ज़रूरी जानकारी समय-समय पर विभाग से मिलती रही जिससे मन की शंकाएं दूर हुईं और इलाज पूरा करने की हिम्मत मिली। इलाज के दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने जो भी सलाह दी उसका मैंने पालन किया और आज बिल्कुल स्वस्थ हूँ।

हर माह चार टीबी रोगियों को दे रहीं पोषण सामग्री : स्वस्थ होने के बाद श्वेता एक स्वयंसेवी संस्था पॉवर विंग्स की परिवर्तन मुहिम से जुड़ गई हैं और अपने वेतन का एक हिस्सा हर माह इस संस्था को देती हैं जिससे जरूरतमंद क्षय रोगियों को उचित सहयोग मिल सके। पॉवर विंग्स फाउंडेशन संस्था की अध्यक्ष सुमन सिंह रावत बताती हैं- संस्था की परिवर्तन मुहिम के तहत हम टीबी रोगियों को गोद लेकर पोषणात्मक और भावनात्मक सहयोग दे रहे हैं। पिछले छह माह से श्वेता द्वारा हर माह चार टीबी रोगियों के पोषण की मदद के लिए धनराशि दी जा रही है, जिससे हम उन्हें पोषण सामग्री उपलब्ध कराते हैं। श्वेता जैसे लोग क्षय उन्मूलन के लिए आगे आयें तो प्रधानमंत्री के वर्ष 2025 तक क्षय उन्मूलन के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। परिवर्तन मुहिम से ही जुड़ी सोनिया टंडन और प्राची श्रीवास्तव बताती हैं कि वर्ष 2019 से वह दोनों टीबी रोगियों को गोद ले रहीं हैं और अब तक 212 रोगियों को गोद ले चुकी हैं।

देश भर में इलाज की सुविधा : जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. एके सिंघल बताते हैं कि निक्षय पोर्टल पर पंजीकृत होने के बाद देश के किसी भी हिस्से में क्षय रोगी का इलाज हो सकता है। इसके साथ ही उसे वह सभी सुविधाएं भी मिलेंगी जो कि गृह जनपद में मिलनी चाहिए। उन्होंने जनपद में शैक्षणिक संस्थाओं , गणमान्य व्यक्तियों, औद्योगिक संस्थानों को सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए क्षय रोगियों को गोद लेने की अपील की और कहा कि  क्षय रोगियों गोद लेने से उन्हें न  केवल पोषण आहार मिलेगा  बल्कि उन्हें इस बात का भी एहसास होगा कि क्षय रोग से लड़ने में वह अकेले नहीं है