आरबीएसके के प्रयासों से फिर से सुन सकेगी बिटिया



  • उप मुख्यमंत्री से बच्ची के पिता ने लगाई थी मदद की गुहार
  • जन्मजात न बोलने व न सुनने की बीमारी से पीड़ित है 12 वर्षीय बच्ची
  • स्वास्थ्य विभाग ने निःशुल्क दिया डिजीटल हियरिंग मशीन

गोरखपुर - जन्मजात न बोलने व सुनने की बीमारी से ग्रसित 12 वर्षीय बिटिया राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के प्रयासों से फिर से सुन सकेगी । इसके लिए उसे डिजीटल हियरिंग मशीन निःशुल्क दी गयी है। पुरानी मशीन खराब हो चुकी थी और पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि 46000 की मशीन फिर से खरीद कर दे सकें । उन्होंने उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक से मिल कर मदद की गुहार लगाई थी जिस पर स्वास्थ्य विभाग ने मशीन की व्यवस्था कर उपलब्ध कराया है। मशीन देने के अलावा कमिश्नर रवि कुमार एनजी,  जिलाधिकारी कृष्णा करूणेश और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने बच्ची के पिता को हरसंभव मदद का भरोसा दिया है ।

भटहट ब्लॉक क्षेत्र के रहने वाले राजेश गुप्ता (38) एक वाहन एजेंसी में कर्मचारी हैं । वह बताते हैं कि उनकी बड़ी बेटी के जन्मजात विकार का पता तब चला जब वह एक साल की हो गयी । वह बोलने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देती थी क्योंकि न तो वह सुन सकती थी और न ही वह बोल सकती थी । उन्होंने जनपद के सभी निजी चिकित्सकों को दिखाया, लेकिन हर जगह से सिर्फ लाखों रुपये के काक्लियर इम्प्लांट की सलाह मिली जो उनके लिए कराना संभव नहीं था। जब बच्ची पांच साल की हो गयी तो उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में बच्ची को दिखाया। वहां से सलाह मिली कि बच्ची की स्पीच थेरेपी कराएं और उसे डिजीटल हियरिंग मशीन दिलवा दें।

राजेश का कहना है कि उन्होंने पैसे जुटा कर 46000 रुपये की मशीन खरीद कर बच्ची को दी लेकिन वह मशीन डुप्लीकेट थी, जिसकी वजह से थोड़े समय में ही खराब हो गयी । जब तक सामर्थ्य रहा तब तक 4000-5000 रुपये प्रति माह खर्च करके बच्ची को स्पीच थेरेपी भी दिलवाई। जब पैसे खत्म हो गये तो घर पर माता-पिता खुद स्पीच थेरेपी देने लगी। इससे बच्ची की स्थिति में काफी सुधार हुआ है लेकिन सुनने वाली समस्या बनी रही । डिजीटल हियरिंग मशीन से बच्ची की दिक्कत दूर हो जाएगी और उम्मीद है कि अपेक्षाकृत सुधार होगा ।

पांच वर्ष तक निःशुल्क काक्लियर इम्प्लांट : आरबीएसके की डीईआईसी मैनेजर डॉ अर्चना का कहना है कि योजना के तहत जरूरतमंद परिवारों के शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों के निःशुल्क काक्लियर इम्प्लांट की सुविधा उपलब्ध है। चूंकि बच्ची इस श्रेणी में नहीं आती है इसलिए डिजीटल हियरिंग मशीन का इंतजाम कर उपलब्ध कराया गया है । यह मशीन उन्होंने सीआरसी से व्यवस्था कर उपलब्ध कराई है। जिले में उनके पास पंद्रह ऐसे बच्चे चिन्हित हैं जिन्हें यह मशीन दी जानी है। नोडल अधिकारी डॉ नंद कुमार के दिशा निर्देशन में बीआरडी मेडिकल कॉलेज व अन्य सम्बन्धित विभागों की मदद से उनकी सहायता की जाएगी ।

समय से लक्षणों की पहचान आवश्यक : चौरीचौरा स्थित स्वास्थ्य केंद्र में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ क्षेत्रपाल यादव का कहना है कि अगर बच्चा तीन से छह माह की उम्र के बीच आवाज देने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो यह चिंता का विषय है। अगर दायें या बायें दिशा में आवाज देने पर वह गर्दन मोड़ रहा है तो अच्छे संकेतांक हैं,लेकिन अगर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है तो हो सकता है कि वह जन्मजात बहरेपन की समस्या से ग्रसित हो। ऐसे बच्चे बोल भी नहीं पाते हैं। ऐसे बच्चों में लक्षणों की पहचान कर तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए क्योंकि उम्र बढ़ जाने के बाद न तो विभागीय योजनाओं का लाभ मिल पाता है और न ही बीमारी को ठीक करना आसान रह जाता है।

टीम से करें सम्पर्क : जिले के सभी 19 ब्लॉक में 38 आरबीएसके टीम प्रतिदिन स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्रों का विजिट करती हैं। अगर किसी का पाल्य जन्मजात गूंगेपन व बहरेपन की समस्या से ग्रसित है तो आशा कार्यकर्ता, स्कूल के शिक्षक या आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के माध्यम से टीम से सम्पर्क कर लें। जरूरतमंद परिवारों के ऐसे बच्चों को चिन्हित कर समय रहते काक्लियर इम्प्लांट की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
- डॉ आशुतोष कुमार दूबे, मुख्य चिकित्सा अधिकारी