क्षय उन्मूलन : जनजागरुकता मुहिम से जोड़े जा रहे विद्यार्थी



  • स्कूल -कालेज  जाकर विद्यार्थियों और शिक्षकों का किया जा रहा  संवेदीकरण
  • टीबी के लक्षणों, इलाज व सरकार की योजनाओं के बारे में दी जा रही  जानकारी

गोरखपुर - देश को वर्ष 2025 तक क्षय रोग यानि टीबी मुक्त बनाने कीजनजागरूकता  मुहिम से छात्र-छात्राओं को भी जोड़ा जा रहा है । इसके तहत जिला क्षय रोग केंद्र की टीम स्कूल व कॉलेज में जाकर विद्यार्थियों एवं शिक्षकों का संवेदीकरण करने में जुटी  है । उन्हें टीबी के लक्षणों, इलाज की व्यवस्था और सरकारी की योजनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है।

राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के पब्लिक प्राइवेट मिक्स (पीपीएम) कोआर्डिनेटर अभय नारायण मिश्र का कहना है कि जनवरी से लेकर अब तक 13 स्कूल कालेज में कार्यक्रम आयोजित किये जा चुके हैं । इस दौरान लगभग 700 विद्यार्थियों व शिक्षकों को टीबी से जुडी हर जरूरी जानकारी दी गयी है। इसका उद्देश्य यह है कि  लोग  आस-पास व जान पहचान में अगर किसी में टीबी के लक्षण देखें तो उनका सही मार्गदर्शन करें और इलाज के लिए अस्पताल भेजें। उन्हें निक्षय पोषण योजना की जानकारी भी दें। संवेदीकरण कार्यक्रम के दौरान बताया जा रहा है कि अगर दो हफ्ते तक लगातार खांसी आए, बलगम में खून आए, रात में पसीने के साथ बुखार चढ़े, तेजी से वजन घटे और भूख न लगे तो यह टीबी का लक्षण हो सकता है। इन लक्षणों के दिखने पर नजदीकी सरकारी अस्पताल में टीबी की जांच करवानी है । जांच व इलाज की सुविधा निःशुल्क है । अगर टीबी की पुष्टि होती है तो इलाज चलने तक दवा के अलावा पोषण के लिए मरीज के खाते में प्रति माह 500 रुपये भी निक्षय पोषण योजना के तहत दिये जाते हैं । नये टीबी मरीज के सूचनादाता गैर सरकारी व्यक्ति को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है ।

महानगर के रामनारायण गर्ल्स इंटर कालेज में पिछले वर्ष संवेदीकरण कार्यक्रम चलाया गया  था। इस साल  एक बार फिरक्षय रोग विभाग की टीम ने  बुधवार को विद्यार्थियों को जागरूक किया। टीम के साथ गये वर्ल्ड विजन इंडिया संस्था के जिला समन्वयक शक्ति पांडेय ने बताया कि जिले में टीबी चैंपियंस की मदद से टीबी मरीजों को मदद पहुंचाई जा रही है। अगर कोई ऐसा मरीज जानकारी में हो तो उसे संस्था के इन प्रयासों से जोड़ा जाए। कालेज की प्रधानाचार्य डॉ अनुपमा शर्मा बताती हैं कि उन्होंने इसी साल दायित्व संभाला है और उनके कार्यकाल में पहली बार यह कार्यक्रम आयोजित हुआ। उन्हें यह तो पता था कि टीबी का इलाज सरकारी अस्पताल में निःशुल्क होता है लेकिन पहली बार इस बात की भी जानकारी हुई कि इलाज के दौरान 500 रुपये भी हर माह मिलते हैं । वह कहती हैं कि जनजागरूकता और नये मरीजों को ढूंढ कर इलाज करने में यह कार्यक्रम काफी कारगर साबित होगा । उन्होंने बताया कि कार्यक्रम के बाद कालेज की छात्रा कीर्ति, रेशमी, सिंधु, नैंसी और मानसी ने टीबी संबंधित जनजागरूकता से जुड़े सवालों का सटीक जवाब दिया ।


पहली बार टीबी को ठीक से जाना : कॉलेज की आठवीं की  छात्रा सिंधु (14) ने बताया कि उन्हें पहली बार टीबी रोग के बारे में ढेर सारी जानकारी मिली। उन्हें बताया गया कि अगर घर में, रिश्तेदारी में या आसपास कोई टीबी के लक्षण वाला व्यक्ति दिखे तो उसे सरकारी अस्पताल में निःशुल्क इलाज के लिए प्रेरित करना है। उन्हें इससे पहले इस बीमारी के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी।

बीच में दवा न बंद करें : समुदाय के बीच यह संदेश देना भी जरूरी है कि टीबी मरीज की पूरी दवा होनी चाहिए। बीच में दवा बंद नहीं होना चाहिए। बीच में दवा बंद करने से टीबी और जटिल हो जाता है और इसका इलाज कठिन हो जाता है । लोगों को टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए भी आगे आना चाहिए ताकि मरीजों को मानसिक संबल व पोषण मिले और वह जल्दी ठीक हो जाएं।