मीजिल्स-रूबेला में भी कोविड गाइड लाइन का अनुपालन करना आवश्यक - डीआईओ



  • डब्ल्यूएचओ के सहयोग से वैक्सीन प्रीवेंटेबल डिजिज सर्विलांस कार्यशाला आयोजित
  • पैरालिसिस, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, नवजात शिशु टेटनस और खसरा रूबेला की निगरानी के लिए हुआ उन्मुखीकरण

कानपुर नगर - नियमित टीकाकरण के तहत पूर्ण प्रतिरक्षण के शत-प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सर्कार कृतसंकल्पित है। इस संबंध में नियमित रूप से दिए जाने वाले टीके के स्तर को बढ़ाने को लेकर सभी प्रयास किये जा रहे हैं। टीकाकरण के सुदृढ़ीकरण को लेकर नियमित टीकाकरण, वीपीडी (वैक्सीन प्रीवेंटेबल डिजिज ) एवं एएफआई सर्विलांस तथा मीजल्स रूबेला उन्मूलन हेतु जिलास्तरीय कार्यशाला का आयोजन गुरूवार को रामा मेडिकल कॉलेज में हुआ । जिला प्रतिरक्षण अधिकारी (डीआईओ) डॉ यूबी सिंह ने कार्यक्रम का दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन किया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ आलोक रंजन के निर्देशन में कार्यशाला का आयोजन डब्ल्यूएचओ के सहयोग से हुआ।

बता दें कि कार्यशाला में टीकों से बचाव वाली बीमारी जैसे पोलियो डिप्थीरिया (गलघोटू), परट्यूसिस (काली खांसी), नियोनेटेल टिटनेस (नवजात टिटनेस) के सर्विलेंस के बारे में बताया गय।  इसमें एएफपी, मिजिल्स, डीप्थीरिया, काली खांसी व नवजात टेटनस जैसे गंभीर बीमारियों के बेहतर इलाज की जानकारी दी गयी।  कार्यशाला में जिला प्रतिरक्षण अधिकारी ने चिकित्सकों इन जानलेवा बीमारियों के लक्षण, जांच के तौर तरीके व लैब सेंपल की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कम्युनिटी को जागरूक करें कि कम से कम हर बच्चों को वैक्सीन जरूर दिलायें, क्योंकि वैक्सीन उपलब्ध रहने के बाद भी जानकारी के अभाव में जान चली जाती है।  ऐसे मरीज दिखे तो तुरंत डब्लूएचओ व प्रतिरक्षण कार्यालय को जानकारी दें।

उन्होंने बताया की मीजिल्स(खसरा) और रूबेला बीमारी में भी कोविड गाइड लाइन का अनुपालन करना आवश्यक है। खसरा-रूबेला की दोनों खुराक (प्रथम और द्वितीय) 9 महीने से 5 साल तक के बच्चों को दी जाती है। साथ ही बताया कि खसरा संक्रामक विषाणुजनित रोग है। यह कमजोर पृष्ठभूमि के बच्चों के लिये विशेष रूप से खतरनाक है, क्योंकि यह कुपोषित और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले बच्चों पर हमला करता है। यह अंधापन, दस्त, कान के संक्रमण और निमोनिया सहित गंभीर जटिलताओं का कारण हो सकता है। रूबेला एक संक्रामक, आमतौर पर हल्का वायरल संक्रमण है जो अक्सर बच्चों और युवा वयस्कों में होता है। गर्भवती महिलाओं में रूबेला संक्रमण मृत्यु या जन्मजात दोषों का कारण बन सकता है जिसे जन्मजात रूबेला सिंड्रोम कहा जाता है जो अपरिवर्तनीय जन्म दोषों का कारण बनता है। रूबेला खसरे के समान नहीं है, किंतु दोनों बीमारियों के कुछ संकेत और लक्षण समान हैं, जैसे कि लाल चकत्ते। रूबेला खसरे की तुलना में एक अलग वायरस के कारण होता है और रूबेला संक्रामक या खसरा जितना गंभीर नहीं होता है। उन्होंने खसरा और रूबेला की रोकथाम के उपाय, टीकाकरण आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी ।

कार्यशाला में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आरएनटीडीओ डॉ बीएस चंदेल ने कार्यशाला में मौजूद मेडिकल कॉलेज के समस्त विभागाध्यक्षों को राष्ट्रीय नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत ‘पाँच साल सात बार, छूटे न टीका एक भी बार’ पर विस्तृत जानकारी दी। इसके साथ ही आउटब्रेक व प्रतिकूल प्रभाव के प्रबंधन के बारे में भी जानकारी दी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एसएमओ डॉ हेमंत ने कार्यशाला में प्रोजेक्टर के माध्यम से विस्तार पूर्वक जानकारी दी। डॉ हेमंत ने बताया कि अगर 15 साल तक के बच्चे का कोई अंग छः माह तक लुंज या कमजोर दिखे तो ये एएफपी के लक्षण हैं। बताया कि बुखार, गले में दर्द, टांसील लाल व उसके आसपास व्हाईट व डार्क ग्रे थक्का और झिल्ली आदि गलघोटु और कम से कम दो सप्ताह से खांसी, खांसने के बाद उल्टी होना आदि काली खॉसी के लक्षण हैं।  उन्होने कहा कि इन गंभीर बीमारियों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इन बीमारियों के लक्षण के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साथ ही मरीज में कैसे इन बीमारियों के लक्षण को तलाशेंगे और इसके क्या उपाय होंगे। इसपर विस्तार पूर्वक चर्चा की गयी।

उन्होंने टीकाकरण सत्र पर हर एक लाभार्थी को दिये जाने वाले चार प्रमुख संदेश के बारे में चर्चा की।इस अवसर पर रामा मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक डॉ सिद्धार्थ मनी सहित प्रतिरक्षण कार्यालय व विश्व स्वास्थ्य संगठन का समस्त स्टाफ मौजूद रहा।