क्षय उन्मूलन कार्यक्रम को मिशन मोड में चलाने की जरूरत



  • मील का पत्थर साबित होंगे कार्यक्रम के फ़ोर पिलर-डिटेक्ट, ट्रीट, प्रिवेंट व बिल्ड
  • देश टीबी मुक्त तभी बनेगा जब हर मरीज की पहचान कर जल्दी इलाज शुरू हो
  • सरकार के हाई लेवल कमिटमेंट के बाद भी चुनौतियों पर ध्यान देना बहुत जरूरी - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

देश को टीबी मुक्त बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प को साकार करने के लिए जरूरी है कि हर टीबी मरीज की शीघ्र पहचान कर इलाज शुरू किया जाए। इसी उद्देश्य से क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के चार प्रमुख स्तम्भ (पिलर)-डिटेक्ट, ट्रीट, प्रिवेंट और बिल्ड तय किये गए हैं। इन्हीं चार प्रमुख स्तम्भों पर प्रोग्राम को केन्द्रित करते हुए इस बार विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) की थीम “हाँ, हम टीबी ख़त्म कर सकते हैं” तय की गयी है। कार्यक्रम को सही मायने में धरातल पर उतारने के लिए अब जरूरत है तो बस मिशन मोड में कार्य करने की क्योंकि सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति के बाद भी अभी कुछ चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

पिछले साल देश में 29 लाख टीबी मरीजों की पहचान के लक्ष्य के सापेक्ष करीब 24 लाख टीबी मरीजों का ही नोटिफिकेशन हो पाया जो कि लक्ष्य का करीब 85 प्रतिशत है। अब जिन पांच लाख की पहचान नहीं हो सकी वह कहाँ और किस प्रकार का इलाज ले रहे हैं यह जानना भी जरूरी है क्योंकि एक टीबी संक्रमित इलाज के अभाव में 10 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है। सरकारी क्षेत्र में 16.86 लाख और प्राइवेट में 7.33 लाख टीबी मरीजों का नोटिफिकेशन किया गया। ऐसे में आवश्यकता है कि प्राइवेट डाक्टर भी टीबी मरीजों के नोटिफिकेशन में बड़ा दिल दिखाएँ क्योंकि आधे से अधिक मरीज इलाज के लिए उन्हीं के पास पहुँचते हैं। इसी तरह पिछले साल 2022 में करीब 1.19 लाख एमडीआर टीबी मरीजों की पहचान का लक्ष्य था लेकिन नोटिफाई हो पाए केवल 60-62 हजार। इस बड़े गैप को दूर करना एक बड़ी चुनौती है, इसलिए क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के पहले पिलर डिटेक्ट पर फोकस करने की सख्त जरूरत है।   

देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए प्रति लाख टीबी केस को 44 पर लाना है जो कि कोविड से पहले प्रति लाख 188 के करीब चला गया था, लेकिन कोविड की वजह से अब यह बढ़कर 210 प्रति लाख हो गया है  इसी तरह प्रति लाख तीन मृत्यु की बात कही गयी है, जो कि अभी 30 के ऊपर है। इस तरह लक्ष्य प्राप्ति या लक्ष्य के करीब पहुँचने के लिए जरूरी है कि टीबी के मरीजों की संख्या या टीबी से होनी वाली मौत की संख्या पर जल्दी से जल्दी काबू पाया जाए। दूसरी ओर अभी हाल ही में आई नेशनल टीबी प्रिवेलेंस सर्वे की बात करें तो प्रति लाख 312 टीबी मरीज होने की बात कही गयी है। ऐसे में इस गैप को भी दूर करना बहुत जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वर्ष 2015 के स्तर पर 80 प्रतिशत केस और 90 प्रतिशत टीबी से होने वाली मौत को घटाने की बात कही थी।

दूसरे प्रमुख पिलर ट्रीटमेंट पर देश में बहुत काम हुआ है। पहले हम उन्हीं मरीजों की जांच और इलाज करते थे, जो अस्पताल तक आते थे किन्तु अब मोबाइल टीबी डायग्नोस्टिक वैन के जरिये घर-घर जाँच की सुविधा मौजूद है। हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के जरिये भी घर के नजदीक जाँच और इलाज की सुविधा मिल रही है। देश में अभी 23,000 से अधिक माइक्रोस्कोपी सेंटर, 4960 रैपिड मालीकुलर टेस्ट और 92 कल्चर लैब मौजूद हैं। इससे जाँच की गुणवत्ता जरूर बढ़ी है लेकिन लक्ष्य को पाने के लिए लैब की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। गुणवत्तापूर्ण इलाज की बात करें तो आज 83 प्रतिशत सेंसिटिव टीबी मरीजों का सफल इलाज हो रहा है । ड्रग रजिस्टेंट टीबी के करीब 57 प्रतिशत मरीजों का सफल इलाज मुमकिन हुआ है जो कि वर्ष 2017 में 49 प्रतिशत था। टीबी मुक्त देश का सपना तभी साकार होगा जब पूरे देश में टीवी प्रिवेंशन ट्रीटमेंट (टीपीटी) को सही मायने में धरातल पर उतार दिया जाए, जिसके तहत हर टीबी मरीज के परिवार और निकट सम्बन्धियों को टीबी से बचाव की दवा खिला दी जाए। इससे लेटेन्ट टीबी पर भी काबू पाया जा सकता है। इसके साथ ही प्रोग्राम से मल्टी सेक्टर का जुड़ाव भी बहुत जरूरी है । प्रोग्राम से पंचायती राज, आयुष, रेलवे, रक्षा, शिक्षा आदि को जोड़कर सामूहिक प्रयास से लक्ष्य को हासिल किया जा रहा है, जिसको बढ़ाने की जरूरत है। सामुदायिक सहभागिता के साथ ही सामाजिक संगठनों, कारपोरेट और जनप्रतिनिधियों का भी पूरा जुड़ाव प्रोग्राम के लिए बहुत जरूरी है। कुल मिलाकर टीबी के खिलाफ एक जनांदोलन खड़ा करना है तभी प्रधानमंत्री के संकल्प को साकार किया जा सकता है।     


(वाइस चेयरमैन, नेशनल टीबी टास्क फ़ोर्स व पूर्व निदेशक वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्युट, नई दिल्ली)