एमडीआर टीबी से हुईं स्वस्थ, अब जगा रहीं जागरूकता की अलख



  • टीबी  मरीजों  को  स्वस्थ  बनाने  में शबनूर बनीं  सहायक
  • टीबी से जुड़ी भ्रांतियों को कर रहीं दूर

कानपुर नगर  - मच्छरिया निवासी 25 वर्षीय शबनूर मल्टी  ड्रग  रजिस्टेंट  (एमडीआर) टीबी से पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद अब सक्रिय रूप से टीबी चैम्पियन की अहम् भूमिका निभा रही हैं। वह अब तक कई मरीजों की मदद कर चुकी हैं और सभी स्वस्थ हैं। स्कूलों व गाँव में बैठक कर टीबी के लक्षणों, जाँच और इलाज के बारे में जानकारी देती हैं और यह भी बताती हैं कि बीमारी में नियमित दवा सेवन, पोषाहार के साथ ही परिवार का पूरा सहयोग भी बहुत जरूरी है । 

शबनूर बताती हैं - ``यह बात वर्ष 2017 की है जब मैं सात महीने की गर्भवती थी| तभी मुझे बहुत खांसी आने लगी जिससे पेट के निचले हिस्से पर भी जोर पड़ता था। शुरुआत में अनदेखी की पर फिर आठवें महीने में मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खा ली और आराम मिल गया। नवा महीना लगते ही दुबारा खासी और बुखार आने लगा मैने स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाया उन्होंने दवा दे दी जिससे  एक दो दिन आराम मिला पर दिक्कत बनी रही। हालत और बिगड़ती ही चली गयी। मैंने जाँच की बात घरवालों से कही तो परिवार में सभी ने कहा बस बच्चा हो जाये फिर कोई जांच करवाना नहीं तो बच्चे पर असर पडेगा।‘’ जैसे तैसे समय बीता और दिक्कत बढ़ने पर शबनूर जिला अस्पताल एडमिट होने पहुंची तो वहां पर मना कर दिया| तभी एक प्राइवेट अस्पताल में उसने बेटे को जन्म दिया। उसके बाद फिर बुखार आने लगा।   ऐसे  में  दूसरे  प्राइवेट  डॉक्टर  को  दिखाया  तो  एक्स-रे  जांच  में  फेफड़े  की  टीबी  निकली।  उन्ही के कहने पर इलाज शुरू किया पर पैसे के अभाव में बीच में ही इलाज छोड़ना पड़ा ।

कुछ महीनों बाद  ख़ासी और बुखार से शरीर  इतना  कमजोर  हो  गया  कि  कोई भी काम करना  मुश्किल  हो  गया।  ऐसे  में  एक  परिचित  की  सलाह  पर  सरकारी केंद्र में दिखाया और वहां  सीबी  नॉट  मशीन  से  बलगम  की  जांच  की  गयी  जिसमें  एमडीआर  टीबी  की  पुष्टि  हुई।  चिकित्सकों  ने  एक  दिन  के  लिए  भर्ती  कर  टीबी  की  दवा  दी और समझाया कि दवाई  का  पूरा  कोर्स  करना  है  और  बिना  चिकित्सक  की  सलाह  से  दवा  बंद  नहीं  करनी  है।  उनकी  सलाह  से  दवा के साथ साथ समय से नाश्ता  व  पौष्टिक भोजन  और मौसमी  फल,  सब्जियाँ, भुना  चना और गुड़  आदि  का नियमित  सेवन  करती थी। नियमित  इलाज  और पौष्टिक आहार से  मेरा शरीर टीबी से मुक्त  हो  गया।

शबनूर बताती हैं  कि उन्होंने इलाज के दौरान अपने बच्चे का विशेष ध्यान दिया। हालाँकि उन्होंने उसको माँ के दूध की बजाये बोतल से दूध पिलाया क्यूंकि उनको दूध बना ही नहीं पर बोतल से दूध पिलाते वक़्त भी पूरे समय मास्क का प्रयोग किया। उन्होंने बताया की बच्चे के सभी दैनिक कार्यों को करवाते वक़्त पूर्ण रूप से मास्क लगाया और साफ़ हाथों का ही प्रयोग किया।  जिन दिक्कतों का सामना उसे करना पड़ा, वह किसी और को न करना पड़े यही सोचकर अब  वर्ल्ड विजन इण्डिया  संस्था  से  जुडकर समुदाय को जागरूक  कर रहीं है । स्कूलों और सामुदायिक बैठकों में जाकर बताती है  कि दो हफ्ते से अधिक समय तक खांसी आये, बुखार बना रहे, वजन गिर रहा हो तो टीबी की जाँच जरूर कराएँ |अगर किसी को जांच व इलाज को लेकर कोई शंका या झिझक होती है तो उस पर खुलकर चर्चा करती हूँ और अपने अनुभवों के आधार पर उसे दूर भी करती है ।

सामान्य टीबी का बिगड़ा रूप है एमडीआर : एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस) सामान्य टीबी का बिगड़ा हुआ रूप है, जिसमें टीबी की सामान्य दवा असर करना बंद कर देती है। टीबी का यह स्तर मरीज द्वारा पूरा इलाज लेना या दवा लेने में लापरवाही करना और परहेज नहीं करना रहता है। जिला कार्यक्रम समन्वयक राजीव सक्सेना ने बताया कि एमडीआर मरीज को ठीक होने में एक से दो साल तक समय लग जाता है। उन्होंने बताया की जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 तक 63 टीबी मरीज़ एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस) से ग्रस्त पाये गये।