उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो



  • केजीएमसी-1970 एमबीबीएस/बीडीएस बैच का गोल्डन जुबिली रीयूनियन
  • देश और विदेश में केजीएमयू का मान बढ़ाने वालों ने यादों को किया ताजा
  • डॉ. पुरी ने कहा - विवि के गौरवशाली इतिहास में एल्युमिनाई की बड़ी भूमिका 

लखनऊ - केजीएमसी-1970 बैच के एमबीबीएस और बीडीएस के डाक्टरों और पूर्व शिक्षकों के ‘जार्जियन 70 गोल्डन जुबिली रीयूनियन’ का शनिवार को केजीएमयू के सेल्बी हॉल (पूर्व में ब्राउन हॉल) में विधिवत शुभारम्भ हुआ। इस मौके पर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी केजीएमयू का परचम फहरा रहे चिकित्सकों ने अपने विद्यार्थी जीवन के सुनहरे दिनों की यादों को ताजा किया। इस मौके पर केजीएमयू के कुलपति ले.ज. डॉ. बिपिन पुरी ने विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास और उपलब्धियों पर विस्तार से प्रकाश डाला और बशीर बद्र का एक शेर पढ़ते हुए कहा- “उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए।“         

समारोह में डॉ. पुरी ने कहा कि 50 साल पहले साथ में शिक्षा ग्रहण करने वालों को एक मंच पर जुटाना कठिन कार्य है किन्तु आज बड़ी तादाद में 1970 बैच के डाक्टरों को एक साथ देखकर बहुत ही प्रसन्नता हो रही है। इसके लिए उन्होंने जार्जियन 70 गोल्डन जुबिली रीयूनियन के आयोजन अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सचिव डॉ. एस. के. तिवारी के प्रयासों को सराहा। मंच पर उपस्थित एनाटॉमी विभाग के पूर्व प्रमुख और वरिष्ठतम शिक्षक प्रोफेसर (डॉ.) ए हलीम, डॉ. जी.पी. गुप्ता, कुलपति डॉ. पुरी, आयोजन अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद, यूके से मेजर जनरल डॉ. आरपी चौबे और डॉ. परमजीत सिंह व अन्य के स्वागत से समारोह की शुरुआत हुई। मानवता की सेवा में असंख्य मेडिकल छात्रों के करियर को आकार देने के लिए शिक्षकों को प्रतीक चिह्न भेंटकर सम्मानित किया गया और उनके सराहनीय योगदान को याद किया गया।

‘जार्जियन 70 गोल्डन जुबिली रीयूनियन’ के आयोजन अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि आज जो आयोजन हो रहा है, इसे वर्ष 2020 में होना था किन्तु कोविड-19 के कारण इसे दो साल बाद करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे बैच में से चार डाक्टरों ने केजीएमयू में संकाय सदस्यों के रूप में सेवा की, 18 ने अन्य मेडिकल कॉलेजों में एचओडी / प्रिंसिपल / निदेशक के रूप में सेवा की, 10 सशस्त्र बलों में शामिल हुए, 23 ने विदेश में सेवा की। उन्होंने सभी बैचमेट्स और सहयोगियों से जॉर्जियन एल्युमिनाई एसोसिएशन को व्यक्तिगत रूप से उदारतापूर्वक दान करने की अपील की और खुद एसोसिएशन को 51 हजार रुपये का दान देकर एक मिसाल कायम की।

आयोजन सचिव डॉ. एस. के. तिवारी के अस्वस्थ होने के कारण कार्यक्रम में शामिल न हो पाने पर मेजर जनरल डॉ. आर पी चौबे ने सचिव की रिपोर्ट और बैचमेट्स की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा पल्मोनरी मेडिसिन के क्षेत्र में किये गए उल्लेखनीय योगदान का ही परिणाम है कि बैच से एकमात्र उन्हें ही डॉ. बीसी रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा अभी हाल ही में आई विश्व के दो फीसद सर्वश्रेष्ठ साइंटिस्ट की सूची में भी उनके बैच के डॉ. ए.सी. आनंद और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को स्थान मिला है, जो गौरव की बात है। प्रोफेसर (डॉ.) ए हलीम और डॉ. जी.पी गुप्ता ने इस अवसर पर सभी को आशीर्वाद दिया और अपने विद्यार्थियों की उपलब्धियों पर गर्व भी किया। गुरू-शिष्य परम्परा पर भी प्रकाश डाला। समारोह का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यक्रम में बैच के करीब 105 चिकित्सक अपने परिवार के साथ शामिल हुए। इस मौके पर सोविनियर का भी विमोचन किया गया ।

यादों का झरोखा : “मिल गया कमरा नम्बर - 85 वाला” -  कार्यक्रम से इतर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वर्ष 1970 में एमबीबीएस के शुरुआत के दिनों की यादों को ताजा करते हुए बताया कि हास्टल में प्रवेश के शुरूआती दो महीनों में रात में कमरे की लाईट जलाना सीनियर द्वारा मना किया गया था, यूँ कहें वह रैगिंग का एक हिस्सा था लेकिन एक दिन रूम पार्टनर के भाई मिलने आ गए और उनके बहुत जिद करने पर लाइट जला दी । फिर क्या था हमारे कमरे का नम्बर सीनियर की डायरी में दर्ज हो गया । अब यह डर था कि सीनियर के आदेश के उल्लंघन का दंड जरूर मिलेगा, यह सोचकर तय किया कि रास्ते में चलते समय जब सीनियर कमरा नम्बर पूछेंगे तो दूसरा कमरा नम्बर बता देंगे ..... कुछ दिन तक तो यह चल गया । एक दिन पीछे से सीनियर एक-एक से नाम और कमरा नम्बर पूछ रहे थे और मुंह से निकल गया राजेन्द्र प्रसाद कमरा नम्बर-85.... फिर क्या था .... शोर मच गया कि मिल गया 85 नम्बर वाला .... हालांकि गलती मानने और सारी बात बताने पर सस्ते में छूट गया। उनका कहना था कि उस दौर में रैगिंग का मतलब सिर्फ और सिर्फ सभी को केजीएमसी के रंग में ढालना था और कुछ नहीं।