जननांग टीबी महिलाओं में बांझपन का प्रमुख कारण - डॉ. राजेंद्र प्रसाद



क्षय रोग यानि टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होने वाला एक संक्रामक रोग है। हालांकि पुरुषों में यह बीमारी ज़्यादा देखने को मिलती है लेकिन महिलाओं पर इसका प्रभाव कुछ अलग तरीके से होता है।

भारत में हर वर्ष 10 लाख से अधिक महिलाओं और लड़कियों में टीबी की पहचान होती है और यह प्रजनन आयु वर्ग (15 से 49 वर्ष) की महिलाओं की अधिक मौतों का भी प्रमुख कारण है। इसके अलावा ऐसे देश जहाँ ज्यादा युवा महिलाएँ एचआईवी से संक्रमित  हैं, उनमें भी टीबी के जोखिम की सम्भावना अधिक रहती है। सामाजिक कारणों और जागरूकता के अभाव में भी बड़ी संख्या में महिलाएं टीबी से ग्रसित हो रही  हैं।

टीबी महिलाओं में भी व्यापक रूप से फैली है, विशेष रूप से विकासशील देशों की महिलाएं फेफड़ों की टीबी के बाद सबसे अधिक जननांग की टीबी से प्रभावित होती हैं। इसको जेनिटल टीबी भी कहते हैं। शरीर के किसी भी हिस्से में टीबी संक्रमण के कारण जननांग की टीबी हो सकती है हालांकि फेफड़ों की टीबी सबसे आम है, पर गुर्दे, पेट, हड्डी या जोड़ में भी टीबी का संक्रमण हो सकता है। जननांग में आमतौर पर सबसे पहले संक्रमण फैलोपियन ट्यूब से शुरू होता है, जो बाद में अन्य जननांगों में फैल जाता है। फैलोपियन ट्यूब से होकर ही संक्रमण गर्भाशय में फैलता है। लगभग 15 से 20 प्रतिशत मामलों में संक्रमण फैलोपियन ट्यूब से अंडाशय में फैल जाता है और सबसे आखिरी में यह नीचे की तरफ गर्भाशय के मुंह को प्रभावित करता है।

आमतौर पर जिन महिलाओं में अनियमित माहवारी के लक्षण दिखते हैं- जैसे- माहवारी का न होना (एमेनोरिया), अत्यधिक रक्तस्राव (मेनोरेजिया), अनियमित माहवारी (ओलिगोमेनोरिया), योनि स्राव, पेडू में दर्द और बांझपन उन्हें जननांग की टीबी हो सकती है। टीबी से पीड़ित लगभग 50 से 75 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं और कुछ लक्षण जैसे सांसें तेज़ चलना और थकान, गर्भावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के समान होने के कारण इसकी पहचान नहीं हो पाती। मेनोपॉज़ या रजोनिवृत्ति के बाद जननांग की टीबी के लक्षण गर्भाशय के कैंसर से मिलते-जुलते हो सकते हैं जैसे रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव, योनि से लगातार स्राव और गर्भाशय का संक्रमण। जननांग टीबी के लक्षण स्त्री रोग और पेट की विकृतियों  जैसे जननांग के कैंसर, गंभीर अपेंडिक्स, अंडाशय में गाँठ, जननांग मार्ग के संक्रमण (पेल्विक इन्फ्लेमेटरी डिजीज) या अस्थानिक गर्भावस्था (एक्टोपिक प्रेगनेंसी) के जैसे भी हो सकते हैं। जननांग की टीबी की पहचान महिला के स्वास्थ्य की पिछली पूरी जानकारी, स्त्री रोग संबंधी जाँच तथा अन्य महत्वपूर्ण जांचों जैसे छाती का एक्स-रे, पेडू का अल्ट्रासाउंड, हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी, पेडू का सीटी स्कैन और  लैप्रोस्कोपी जैसी जाँच के आधार पर किया जाता है हालांकि महिला जननांग की टीबी का उपचार पुरुषों और महिलाओं के शरीर के किसी भी और हिस्से के उपचार की तरह ही होता है। ऐसी महिलाएँ जिन्हें रिफैम्पिसिन उपचार की आवश्यकता होती है, उनके लिए वैकल्पिक गर्भनिरोधक उपायों पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि यह गर्भ निरोधक गोलियों कि प्रभावकारिता को ख़त्म कर देता है। ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के केस में एमिनोग्लाइकोसाइड्स, कैप्रोमाइसिन और एथियोनामाइड का उपयोग नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं में इस तरह के उपचार के संभावित खतरों पर भी विचार किया जाना चाहिए।

जननांग टीबी महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है और आमतौर पर संक्रमण के लक्षण न दिखने और इसकी पहचान में आने वाली चुनौतियों के कारण इसकी व्यापकता का सही आंकलन नहीं हो पाता। महिलाओं में बांझपन और मासिक धर्म की अनियमितता के इस महत्वपूर्ण कारण के बारे में चिकित्सकों को जागरूक होने की आवश्यकता है। बांझपन और माहवारी संबंधी समस्याओं  के मूल्यांकन में जननांग की टीबी की जाँच को भी शामिल किया जाना चाहिए। विशेष रूप से बांझपन के संबंध में, बीमारी की गंभीर अवस्था जैसे गंभीर फाइब्रोसिस, एडहेशंस और उपचार के परिणामों को झेलने वाली अधिकतर महिला रोगी, गरीब परिवारों की हैं। ऐसे में जटिलताओं से बचने और प्रजनन क्षमता को सुरक्षित रखने के लिए शीघ्र पहचान और सही उपचार बेहद महत्वपूर्ण है और इसलिए यह भी ज़रूरी है कि फेफड़ों की टीबी के रोगियों को घर और सार्वजनिक स्थानों पर श्वसन स्वच्छता का पालन करने और मानक उपचार का पालन करने के लिए शिक्षित किया जाए। विशेष तौर पर जननांग की टीबी होने पर, सुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने से जननांग संक्रमण की संभावना को कम किया जा सकता है। टीबी से अधिक रूप से प्रभावित देशों जैसे भारत में, बचाव के तौर पर बीसीजी टीकाकरण किया जाता है।

 

(लेखक नेशनल टीबी टास्क फ़ोर्स के वाइस चेयरमैन हैं, वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट नई दिल्ली के पूर्व निदेशक और किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊ के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं)