बच्चों में कुष्ठ या टीबी के लक्षण दिखें तो आरबीएसके टीम से करें सम्पर्क



  • सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर विजिट करती हैं आरबीएसके टीम

गोरखपुर - जिले के सभी सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों पर राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) टीम विजिट करती है और विभिन्न प्रकार के जन्मजात बीमारी के मरीजों को ढूंढ कर इलाज की सुविधा दिलवाती है । टीम को कुष्ठ व टीबी पीड़ित बाल मरीजों को भी ढूंढना है और उन्हें सरकारी सुविधाओं से जोड़ना है । ऐसे में अगर किसी भी बच्चे के भीतर इन बीमारियों के लक्षण दिखें तो स्थानीय सरकारी स्कूल के शिक्षक, आशा कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से आरबीएसके टीम से सम्पर्क कर लें । जिले में आरबीएसके से जुड़े सभी चिकित्सकों को इस सम्बन्ध में प्रशिक्षित भी किया जा चुका है । यह जानकारी जिला क्षय उन्मूलन और कुष्ठ निवारण अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव ने दी।

उन्होंने बताया कि बच्चों में कुष्ठ और टीबी रोग मिलने पर ज्यादा सतर्कता बरतनी है। जिले में इस समय टीबी के 1558 बाल रोगियों और पांच बाल कुष्ठ रोगियों का इलाज चल रहा है । इन बीमारियों को बच्चों में ढूंढना भी कठिन होता है । इसी उद्देश्य से उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव, जिला कुष्ठ परामर्शदाता डॉ भोला गुप्ता और आरबीएसके की डीईआईसी मैनेजर की टीम द्वारा सभी चिकित्सकों को दोनों बीमारियों और कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी दिलवा दी गयी है । टीम के लोग बाल मरीजों की पहचान करने में दक्ष हैं और अगर सामुदायिक सहयोग रहा तो बाल मरीजों को ढूंढ कर उन्हें इलाज की सुविधा दी जा सकेगी । एसीएमओ आरसीएच डॉ नंद कुमार, एसीएमओ वीबीडीसी प्रोग्राम डॉ एके चौधरी, उप जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ अनिल सिंह, डीपीसी धर्मवीर प्रताप सिंह, पीपीएम समन्वयक एएन मिश्रा, फिजियोथेरेपिस्ट आसिफ, एनएमए पवन श्रीवास्तव, महेंद्र चौधरी और डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट डॉ सौरभ द्वारा भी दोनों बीमारियों में आरबीएसके की भूमिका की जानकारी दी जा चुकी है ।

डॉ यादव ने बताया कि अगर बच्चे को दो सप्ताह से अधिक की खांसी आ रही हो, रात में बुखार हो रहा हो, बुखार के साथ पसीना आ रहो हो, वजन घट रहा हो, भूख न लग रही है तो यह टीबी भी हो सकता है । ऐसे लक्षण वाले बच्चों के अभिभावक आरबीएसके टीम की मदद से बच्चे की टीबी जांच अवश्य कराएं। जांच में टीबी की पुष्टि होने पर ड्रग रेसिस्टेंट टीबी की जांच होगी। मधुमेह और एचआईवी की भी जांच की जाती है । यह सभी सुविधाएं और दवाएं सरकारी प्रावधानों के तहत दी जाती हैं । बच्चे का इलाज चलने तक पोषण के लिए 500 रुपये प्रति माह बच्चे के अभिभावक के खाते में दिये जाते हैं ।

उन्होंने बताया कि अगर बच्चे के शरीर के चमड़ी के रंग हल्के रंग का कोई सुन्न दाग धब्बा हो तो वह कुष्ठ रोग हो सकता है। ऐसे दाग धब्बे पर गर्म या ठंडे का कोई असर नहीं होता है । जब शरीर पर सुन्न दाग धब्बों की संख्या पांच से कम होती है और नसें प्रभावित नहीं होती हैं तो ऐसे कुष्ठ रोगी को पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं जो छह माह के इलाज में ठीक हो जाते हैं। अगर दाग धब्बों की संख्या पांच से अधिक है और नसें भी प्रभावित हो जाती हैं तो ऐसा रोगी मल्टी बेसिलाई (एमबी) कहलाता है और इसका इलाज 12 माह में हो जाता है।

जिला क्षय उन्मूलन एवं कुष्ठ निवारण अधिकारी ने बताया कि आरबीएसके टीम के अलावा जिले के सभी अधीक्षक एवं प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों को भी इन बीमारियों के बारे में संवेदीकृत किया जा चुका है ।

शीघ्र पहचान आवश्यक : सरदारनगर ब्लॉक के आरबीएसके चिकित्सक डॉ अरूण त्रिपाठी ने बताया कि प्रशिक्षण के जरिये संदेश मिला है कि अगर टीबी और कुष्ठ की समय से पहचान हो जाए और इलाज हो जाए तो जटिलताओं को रोका जा सकता है। खासतौर से बच्चों में इनकी समय से पहचान अति आवश्यक है अन्यथा इनके प्रसार और जटिल होने की आशंका बढ़ जाती है । टीम द्वारा पहले भी ऐसे मरीज ढूंढे गये हैं और अब इस पर और अधिक जोर देना है।